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संस्कृति / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
(आतंकवादी से)
मैं तुम्हारे विचारों की
हकलाहट को
तुम्हारी क्रूर मुस्कुराहट से भी
अधिक जान चुका हूँ
तुम कुतरते हो
अपने साम्प्रदायिक दांतों से
मानव संस्कृति का आंचल
और चाहते हो धकेलना हमें
प्रागैतिहासिक गुफाओं के
अँधेरे में वापस
क्या तुम नहीं जानते
सुरक्षित है मानव संस्कृति
मानव सभ्यता
हमारी बौद्धिक कोशिकाओं
के समुद्र में
ह्ज़ारों वर्षों पर फैली हैं
इसकी जड़ें
सुरक्षित है यह
हमारे जीनोम में
हमारी प्रवृत्ति की धरा में
जिसमें नहीं बिछाई जा सकती
बारूदी सुरंगें
अब हम पहुंच चुके हैं
संस्कृति के उस शिखर पर
जहां अब नहीं चढ़ाई जा सकती
किसी भी व्यक्ति की बलि
किसी झूठे ईश्वर के समक्ष.