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संस्पर्श / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
ओ पवित्रा !
मृदुल शीतल उँगलियों से
छू दिया तुमने
माथ मेरा —
मुश्किलें
उस क्षण
गया सब भूल !
खिल गये उर में
हज़ार-हज़ार टटके फूल !
खो गये पथ के
अनेकानेक शूल-बबूल !