संस्मृति /बुलाकी दास बावरा
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ।
प्रीत की कुछ पंक्तियां कवि, साधना में जान पाया,
शुष्क अधरों पर न जाने कौन मृदु-मुस्कान लाया ?
आज जीवन गीत की मैं भावना पहिचान पाया,
अर्थ विरह में वेदना के गीत गाता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ
ज्वारमय हो शान्त सागर,घोर छा जाए अंधेरा,
मैं लहर की तर्जनों में भी सुनूं संगीत तेरा,
रागिनी के उन स्वरों से, जल उठे मन दीप मेरा,
आश की पतवार लेकर, नाव खेता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ
बस तुम्हारी याद में ही जल रहा अतृप्त यौवन,
मिलन की अभिलाष में ही क्षीण जर्जर प्राण-आनन,
चांद की मधु-चांदनी में देख तेरी मौन चितवन,
अश्रु सिंचित, जीर्ण मधुवन को सजाता जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ
कल्पने! मैं आज तुमसे प्रीत बन्धन जोड कर,
दीप सम जलता रहूँगा, जगत विषमता छोड कर,
निर्भीक होकर चल पडा मग-कण्टकों को मोड कर,
हर दिशा में, एक तेरी ज्योति देखे जा रहा हूँ
बस प्रणय की स्मृति ही साथ लेता जा रहा हूँ