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सकल गुण धाम अम्बे तू भला क्या गान गाऊ मै / बुन्देली
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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सकल गुण धाम अम्बे तू, भला क्या गान गाऊ मैं।
बनाऊँ साज पूजन को, कहाँ पर साज पाऊँ मैं।
तुमईं हो व्याप्त ग्रंथों में, तुमईं वेदों पुराणों में।
कहाँ वह ज्ञान है मुझको, जो माता को सुनाऊँ मैं।।
मृदुल सुचि पद्म आसीना, कहाँ आसन बनाऊ मैं।
लगैया पार अब नैया, तेरो सो कौन पाऊँ मैं।।
सुनो हे मातु अब बिनती, अनाथों ओ गरीबों की।
तुम्हें ही मध्य पाऊँ मैं, तुम्हारा गान गाऊँ मैं।।