सकल संताप हरने को कन्हैया तुम चले आओ।
जगत निष्पाप करने को कन्हैया तुम चले आओ॥
बड़ी बेचैन है ये दिन-दिन हो रही मैली
यही अभिशाप हरने को कन्हैया तुम चले आओ॥
नहीं सुनता यहाँ कोई किसी की पीर की बातें
तनिक संलाप करने को कन्हैया तुम चले आओ॥
हुईं गउएँ तुम्हारी आज हैं असहाय बनवारी
इन्हीं का ताप हरने को कन्हैया तुम चले आओ॥
न दिखते कुंज गोकुल में विपिन तरुहीन होते हैं
बढ़ा परिताप हरने को कन्हैया तुम चले आओ॥