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सकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ / फ़राज़
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सकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ
बड़ा उदास समाँ है क़रीब आ जाओ
न तुमको ख़ुद पे भरोसा न हमको ज़ोम-ए-वफ़ा
न ऐतबार-ए-जहाँ है क़रीब आ जाओ
राह-ए-तलब में किसी को ध्यान नहीं
हुजूम-ए-हमसफ़राँ है क़रीब आ जाओ
जो दश्त-ए-इश्क़ में बिछड़ें वो उम्र भर न मिले
यहाँ धुआँ ही धुआँ है क़रीब आ जाओ
ये आँधियाँ हैं तो शहर-ए-वफ़ा की ख़ैर नहीं
ज़माना ख़ाकफ़शाँ है क़रीब आ जाओ
फ़ाक़िह-ए-शहर की मजलिस नहीं के दूर रहो
ये बज़्म-ए-पीर-ए-मग़ाँ है क़रीब आ जाओ
"फ़राज़" दूर के सूरज ग़रूब समझे गये
ये दौर-ए-कमनज़ारा है क़रिब आ जाओ