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सख़्तीपसंद का गीत / ओम भारती

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मुझे सख़्त अमरूद पसंद हैं और सेब
मुझे सख़्त नारियल पसंद हैं और बादाम
जैसे पेंसिलें पसंद हैं सख़्त
जैसे सख़्त फालवाले हल
और जैसे खेत मझे पसंद हैं सख़्त
जो जानते हैं फ़सलों को उगाना हर बरस ज़िद की तरह
ज़िदों में बच्चों की ज़िद मुझे पसंद है
बचपने में सख़्त, जैसे सख़्त मोह बूढ़ों में
पौरूष में पसंद है मुझे सख़्त रीढ़
यौवन में सख़्त वक्ष, वक्ष में सख़्त आग
आग में मुझे पसंद हैं सख़्त अंगार
जैसे पानी में मेरी पसंद है- सख़्त बर्फ़

थोड़े सख़्त हृदय मुझे ज़्यादा पसंद हैं
क्योंकि वही ज़्यादा जानते हैं मृदु भावनाओं को
हाथ पसंद हैं जिनकी पकड़ सख़्त हो
पैर जिनके कदम लम्बे और सख़्त हों
रंग सख़्त पसंद हैं और पक्के
जैसे इस्पात और सीमेंट
क्योंकि सख़्ती ही तोड़ना जानती है और जोड़ना
लिहाज़ा मुझे दलदल नहीं पठार पसंद हैं
और इस तरह पसंद के क्षेत्र में मैं सख़्ती पसंद हूँ

जैस दिन ने कभी पसंद नहीं किया चाँद
और तारा भी उसे बस एक पसंद है
मैं पसंद के समर्पण की हुंडियाँ ठुकराता हूँ।
(1994)