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सख़्त नासाज़ है दुनिया की फ़ज़ा ऐ साक़ी / राजेंद्र नाथ 'रहबर'

 
सख़्त नासाज़ है दुनिया की फ़ज़ा ऐ साक़ी
जाम भर भर के मुझे आज पिला ऐ साक़ी

छा गई झूम के गर्दू पे घटा ऐ साक़ी
आज हर रिंद को भरपूर पिला दे साक़ी

कब से प्यासा हूँ मिरी प्यास बुझा दे साक़ी
मैं तिरा बन्दा हूँ तू मेरा ख़ुदा है साक़ी

हम नहीं वो कि जो उठ जाएंगे पी कर इक जाम
हम को मैखाने का मैखाना पिला दे साक़ी

आज 'रहबर' भी है मैखाना में रौनक-अफ़रोज़
मुतरिबा छेड़ ग़ज़ल जाम उठा ऐ साक़ी।