सखा संग केलि / कृष्णावतरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
एहिना खेल-धूपमे, गपसपमे लीलामय चित्र-विचित्र
करइत रहथि व्यक्त, अनुरक्त जनक हित स्वतः पवित्र चरित्र
कखनहुँ रूप अनूप बनाबथि, अभिनय करथि मगन मनमस्त
नाचथि काछथि लोक मनोरंजन हित गाबथि गीत प्रशस्त
नंदराय आनंद मगन मन सुत मुख निरखि अमन्द
श्लोक रटाबथि आखर-चित्र चिन्हाबथि पढ़बथि छन्द
राम-कृष्ण दुहु गौर - श्याम जनु भानु-चान ब्रजधाम
उगथि संग कत सखा नखत लय घुमथि नगर ओ गाम
टोल - पड़ोसक भवन-आङनहु जगमग करथि इजोत
कतय की कहाँ राखल मधु गोरस न रहैछ इरोत
माखन खाथि चोराय-नुकाय नाम हुनि माखनचोर
उलहन जाय देथि जनि-धनि जसुदाकेँ करइत सोर
डाँट पड़ल तँ कहल, कहाँ हम खयलहुँ जाँचल जाय
देल बाबि मुह देखल जे-किछु कहल-सुनल नहि जाय
गेलि पड़ाय पड़ोसिनि चौँकि-चिहुँकि जसुदहु दृग बंद
की कत देखल सगर भुवन मुख-विवर न बरनिय छंद
गुपचुप बजइछ कंस ध्वस हित देवी जे कहि गेलि
से की एतहि एहि शिशु रूपेँ अवतरि करइछ खेलि
डॉट-दुलारक पुरिबा-पछवा दोरस बहय बसात
सहजहि ब्रज-नभ आनन्दक धन उमड़ि सुखक बरिसात
जते बाल-गोपाल गाम-घर सबहु बटोरथि जाय
मीत प्रीत कत नाम परस्पर प्रीतिक रीति लगाय
वन भोजन-गोचर चारण, फल-फूल संचयन लग्न
संगी संग अंग-अंगी बनि क्रीड़ा-नर्तन मग्न
गपसप लड़बथि, पंजा भिड़बथि, खेलहुँ खेलथि संग
गावथि गबबथि बंसी टेरथि गीत राग धुनि रंग
लोढथि दल-फल-फूल गाम घर डोलथि सहित उमंग
आम-लताम जाम झखबथि पुनि खाथि खोआबथि अंग
मधुरस पिबथि घुमथि खेतहु पथार निरखथि नित चास
चरबथि गाय बथान आनि पुनि बान्हि खोआबथि घास
कुंज-कुंजमे घुमथि वनस्पति-पुंज चिन्हथि दय ध्यान
मुरली लय बजवथि सरिगम साधथि दय तान-बितान