सखि! आयल बसंत हे / राम सिंहासन सिंह
मन में उमंग उठल तन में, सखि! आयल वसंत हे।
जियरा में हुक उठल छेड़े प्रसंग, सखि! आयल वसंत हे।।
कोयल के कूक पर मनवाँ भरमाईत हे,
सजनो ना आयल सनेहिया लजाईत हे।
उठल उमंग अंग-अंग में समायल हे,
तनिको ना नीक लागे हियरा मुरझायल हे।
लेके उन्माद बहे दखिना बयार सखि! आयल वसंत हे।
मन में उमंग उठल तन में, सखि! आयल वसंत हे।।
अमवां के डलिया में मंजरी महक गेल,
पीले-पीले सरसो फुलवा फुला गेल,
फुलवन के रंग-संग भौरा भुला गेल,
लाल-गुलाब से गाल सजा गेल।
लाल पलास छेड़े हिय में उल्लास सखि! आयल वसंत हे।
मन में उमंग उठल तन में, सखि! आयल वसंत हे।।
नया-नया पतिअन से पड़वा सजायल हे,
लाल-पीअर फुलवा से बगीया लहलायेल हे।
तितली के रंग-संग नेहिया समायेल हे,
सखियन के साज संग मनवाँ भरमायल हे।
होली के गीत खोजे मनवाँ में मीत सखि! आयल वसंत हे।
मन में उमंग उठल तन में, सखि! आयल वसंत हे।।
गेहुँआ के बलिया फूल हे चारो ओरिया,
सजना के खातिर भिंजल आँख कोरिआ।
चह-चह चिरंई चिहुँक उठे अँगना,
दूभर होयल पायल कठिन भेल कंगना।
मनवाँ के राग छेड़े लेके ऊ फाग सखि! आयल बसंत हे।
मन में उमंग उठल तन में, सखि! आयल वसंत हे।।