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सखियों के सामने भी जो बात मुख से / कालिदास
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शब्दाख्येयं यदपि किल ते य: सखीनां पुरस्ता-
त्कर्णे लोल: कथयितुमभूदाननस्पर्श लेाभात्।
सोतिक्रान्त: श्रवणविषयं लोचनाभ्यामदृष्ट-
स्त्वामुत्कण्ठाविरचितपदं मन्मुखेनेदमाह।।
सखियों के सामने भी जो बात मुख से
सुनाकर कहने योग्य थी, उसे तुम्हारे मुख-स्पर्श
का लोभी वह कान के पास अपना मुँह
लगाकर कहने के लिए चंचल रहता था।
ऐसा वह रसिक प्रियतम, जो इस समय
आँख और कान की पहुँच से बाहर है,
उत्कंठावश सन्देश के कुछ अक्षर जोड़कर
मेरे द्वारा तुमसे कह रहा है।