मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सखि जोगी एक ठाढ़ अंगनमा मे
अंगनमा मे, हे भवनमा मे
सांपहि सांप बाम-दहिन छल
चित्र-विचित्र बसनमा मे
नित दिन भीख कतऽ सँ लायब
घुरि फिरि जाहु अंगनमा मे
भीखो ने लिअय जोगी, घुरियो ने जाइ
गौरी हे निकलू अंगनमा मे
भनहि विद्यापति सुनू हे मनाइन
शिव सन दानी के भुवनमा मे