भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सखि रे, एकले तिरियवा बिरीछे भइले ठाढ़ / भोजपुरी
Kavita Kosh से
सखि रे, एकले तिरियवा बिरीछे भइले ठाढ़, पिया पंथ हेरि-हेरि हो जाय।
सखिया हो मोरे, बालम हमरो बिदेसवा गइले ना।।१
सखि रे, डँसल सेजिया रे भेयावन, पउवा-पासी लागी गइले घूने,
सखिया रे मोरे, बालम हमरो बिदेसवा गइले ना।।२।।
सखि रे, पानवा भुराइ गइले ना, हाँ रे खैर-सोपरिया लागी गइले घूने,
सखिया हो मोरे, बालम महरो बिदेसवा गइले ना।।३।।