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सखि हो प्रेम नगरिया हमरो छूटल जात बा / महेन्द्र मिश्र

सखि हो प्रेम नगरिया हमरो छूटल जात बा,
जियरा मोर डेरात बा ना।
घर में बाप-मतारी भाई,
संग में केहू नाहीं जाई,
सखि हे झूठे नाता जग में इहाँ बुझात बा,
जियरा मोर डेरात बा ना।
बाबूजी गइलन बाजार,
रूपिया लेई के दुई चार,
सखि हे हमरा लागी चुनरी खरिदात बा,
जियरा मोर डेरात बा ना।
काँचे बंसवा कटाई,
नया डोलिया बनाई,
सखि हो रहिए-रहिए डोलिया लचकत जात बा,
जियरा मोर डेरात बा ना।
लगले चार गो कहाँर,
लेके चलले साजन द्वार,
सखि हो हमके छोड़ि के सभे फिरल जात बा,
जियरो मोर डेरात बा ना।
छूटल धरवा दुआर,
छूट जग परिवार,
सखि हो नेकी बदी संगवा ससुरा जात बा,
जियरा मोर डेरात बा ना।
भजन द्विज महेन्द्र गावे,
लेखा जग के इहे बतावे,
सखि हो हरि के भजऽ समइया बीतल जात बा,
जियरा मोर डेरात बा ना।