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सखी! मोहिं लागी स्याम-ठगौरी / स्वामी सनातनदेव

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राग दरबारी, तीन ताल 26.8.1974

सखी! मोहिं लागी स्याम-ठगौरी।
अच्छी-विच्छी रही सदासों, स्याम बनाई बौरी॥
अब कछु और सुहात न मोकांे, तकत रहों नित पौरी।
आहट सुनत स्याम-आगम गुनि जाऊँ द्वार लौं दौरी॥1॥
रह्यौ न नैंकु चैन सखि! हिय में, बरत रहत जनु होरी।
रैन न नींद न चैन दिवस में, बुद्धि भई अति भोरी॥2॥
असन-बसन की सुधि-बुधि भूली, भ्रमित रहति मति मोरी।
लाज और कुल-कानि गई, नहिं भावहिं छोरा-छोरी॥3॥
होत चवाव चहूँ दिस सजनी! देहिं मोहिं सब खोरी<ref>बुराई</ref>।
कहा करों कोउ बात न बस की, गही मनहुँ कोउ डोरी॥4॥
ज्यांे चाहै त्यों मोंहि नचावै, रही न करनी मोरी।
अपनो अपने में न रह्यौ कछु, मैं कठपुतली कोरी॥5॥

शब्दार्थ
<references/>