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सखी, नहीं तुम / कुमार रवींद्र

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सखी, नहीं तुम
घर है सूना - दिन भी चुप है

सुनी नहीं कमरों ने
मीठी चहक तुम्हारी
बासी लगती है
फूलों की महक कुँआरी

टेर रहा
तुमको बगिया से छली मधुप है

पूजाघर में रूठे बैठे
गौर-पुरारी
राम-सिया ने नहीं
अर्चना है स्वीकारी

हिरदय में
अँधियारा छाया, सजनी, घुप है

दूर कहीं पर
होती जलसे की तैयारी
किन्तु हमारी साँसें
पतझर हैं बेचारी

मेघदूत का यक्ष
बसा भीतर गुपचुप है