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सखी री! मैं तो मोहन बिनु बिलखाऊँ / स्वामी सनातनदेव
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राग पूरिया, तीन ताल 1.7.1974
सखी री! मैं तो मोहन बिनु बिलखाऊँ।
मोहन बिना लगत सब सूनो, कैसे धीर धराऊँ॥
मोहन मेरो सहज सजीलो, ताकी छवि नित ध्याऊँ।
बिनु मोहन जल बिनु सफरी<ref>मछली</ref> सी तड़पि-तड़पि रह जाऊँ॥1॥
मोहन बिना न चैन रैन में, दिन हूँ बिलखि बिताऊँ।
मेरी जीवन-निधि मनमोहन, बिछुरि कहा सपुचाऊँ॥2॥
मोहन में अटके असु<ref>प्राण</ref> मेरे, यासों देह चलाऊँ।
नतरु भला जीवन-धन के बिनु कैसे तनु रख पाऊँ॥3॥
अब तो चलूँ देस प्रीतम के, क्यों यो दिवस गँवाऊँ।
कैसे जिया जुड़ाय पिया बिनु, तरसत वयस बिताऊँ॥4॥
प्रीतम पाय जुड़ाऊँ छाती, तन की सुधि विसराऊँ।
प्रीतम ही के रँग में रचि-पचि प्रीतिमात्र रह जाऊँ॥5॥
शब्दार्थ
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