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सखी री आज जनमे लीला-धारी / सहजोबाई

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सखी री आज जनमे लीला-धारी।
तिमिर भजैगो भक्ति खिड़ैगी, पारायन नर नारी॥
दरसन करतै आनँद उपजै, नाम लिये अघ नासै।
चरचा में सन्देह न रहसी, खुलि है प्रबल प्रगासै॥
बहुतक जीव ठिकानो पैहैं, आवागवन न होई.
जम के दण्ड दहन पावक की, तिन कूं मूल निकोई॥
होई है जोगी प्रेमी ज्ञानी, ब्रह्मरूप ह्वै जाई.
चरन दास परमारथ कारन, गावै सहजो बाई॥