Last modified on 23 जनवरी 2018, at 22:20

सखी रे / सरोज सिंह

एकै चाक के माटी हम सब
कुछ गढ़ल कुछ टूट गईल
कुछ बचल कुछ फूट गईल
कुछ संभरल कुछ छूट गईल
कुछ कांच कुछ सूखल गईल
कुछ पालल कुछ मारल गईल
कुछ बिगड़ल कुछ संवारल गईंल
कुछ जीतल कुछ हारल गईं
 कुछ कुंवार कुछ बियाही गईल
कुछ सादे कुछ शाही गईल
कुछ भरल कुछ रीत गईल
अईसे......सबही के जिनगी बीत गईल
सखी री! एकै चाक के माटी हम सब
कुछ गढ़ल कुछ टूट गईल!