सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै / मुकेश कुमार यादव
सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै।
बैरन बनी सताबै।
आस मिलन के रीत सीखाबै।
गीत ख़ुशी के गाबै।
पनघट तट सूना लागै।
सूना लागै गाँव।
कागा की संदेश उचारै।
बोलै कांव-कांव।
मन भरमाबै।
जिया जराबै।
आस मिलन के देखाबै।
सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै।
पूरबा पछिया शोर करै छै।
मारै दिल में हिलोर।
राह निहारी जागी-जागी।
रात कटै दिन भोर।
चारों ओर नाचै मोर।
सपना बड़ा सताबै।
सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै।
असकल्ली घूमै छी गल्ली।
मन लागै छै टल्ली।
झूमै नाचै मौज मनाबै।
अठखेली दिल्लगी।
आस जगाबै।
मन तरसाबै।
सपना बड़ा सताबै।
सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै।
झुमका बाली कंगना बोलै।
बोलै बिंदिया ऐंगना।
सिहिर-सिहिर जे तन मन डोलै।
लागै सजना ऐंगना।
पास बुलाबै।
आस जगाबै।
हमरा बड़ी सताबै।
सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै।
शीतल-शीतल मंद बहै छै।
ई कैनो पवन बहै छै।
बड़ी जतन करी।
सिहरी छुवन भरी।
मन हमरो शरमाबै।
सखी शिशिर फिर प्रीत जगाबै।