भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सख्त सौदागर समय है यूं हमें रहने न दे / विनय कुमार
Kavita Kosh से
सख्त सौदागर समय है यूं हमें रहने न दे।
बांट हमको, सिर्फ़ बिकने के लिए रहने न दे।
रोज़ ताज़ा तेल बाती डाल दे मां की तरह
ऐ रिवायत तू हमें बासी दिये रहने न दे।
जीस्त सहरा का सफ़र है रात आंधी की तरह
रेत पर दिन के बनाए रास्ते न रहने दे।
शेर वो अच्छा कि जो मुझको अलग पहचान दे।< >
शेर वो सच्चा कि जो मेरा मुझे रहने न दे।