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सगरे होय छै वट-पूजन आय / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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सगरे होय छै वट-पूजन आय, हमरा आँखी लोर जी।
जेकरोॅ पत्नी धरती पर है ओकरोॅ रंगलॅ ढोर जी।
हम्में अवनी तांे अम्बर मेॅ
मिलन असंभव लागै छै।
केनोॅ मिलबै समझ नै आबै,
मोन हमेशा भागै छै।
विधुर घोॅर में घुप्प अंधेरा बांकी में ईजोर जी।
सगरे होय छै वट पूजन आय, हमरा आँखी लोर जी।
स्वप्न मिलन होना छै निश्चित
ई हमरों विश्वास छै।
कोय नैं रोकेॅ पारेॅ एकरा
मरला हृदय हुलास छै।
रात-रात भर गपशप होतै, जांगबै देखबै भोर जी
सगरे होय छै वट-पूजन आय, हमरा आँखी लोर जी।
चरणयान से देरी होय थौं
हवायान से ऐहियेॅ जी।
पथ सजाय के राखभौॅ हम्में
ऐथैॅ गलॉ लगौहियॅ जी।
चहलपहल लागतै चारो दिश, बीच में घुंघरु मोर जी।
सगरे होय छै वट-पूजन आय, हमरा आँखी लोर जी।

17/05/15 अपराह्न 3.45