♦ रचनाकार: अज्ञात
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सगरै समैया सुरी माँ सुति बैसि गमावलि
भादय मास सुरी माँ साजलि बरात है, भादव मास ।
जब हम हे कोसी माँ साजलों बरियात,
तोरा लय कोसी तैयार छलै पाटी अरू लरूआ मिठाई
हे तोरा लय ।।
धुरे धुरे कोसि माँ सन्देश देबै चढ़ाय
हे तोरा लय ।।
जब हम पहुंचल नदिया किनरबा
होबे लागल तोरे बोलहाई हे ।
सन सन केसिया हे कोसीमाय तोहर अँखिया डरावन
पार करू पार करू तोंही बूढ़ी हे माँ ।
हेरै हेतै घर में सासु
कतहुँ ने देखै छियै घर में सलहेस के उपाय
अहि पार देवो कोसी माँ दूध देवौ ढार ।
खन नैया खेबै खन नैया भसियावै
केना हेतै सुरि माँ के विवाह ।
अहि पार देवी मलहा कान दूनू सोनमा,
पार भेले गला गिरिमल हार
तोहर सोनमां कोसी माँ तोहरे भावे
हुकुमे देवै सुरी माँ के पार उतारि ।।