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सगल भव के नाइका / रैदास

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।। राग गौड़ी पूर्वी।।
  
सगल भव के नाइका।
इकु छिनु दरसु दिखाइ जी।। टेक।।
कूप भरिओ जैसे दादिरा, कछु देसु बिदेसु न बूझ।
ऐसे मेरा मन बिखिआ बिमोहिआ, कछु आरा पारु न सूझ।।१।।
मलिन भई मति माधव, तेरी गति लखी न जाइ।
करहु क्रिपा भ्रमु चूकई, मैं सुमति देहु समझाइ।।२।।
जोगीसर पावहि नहीं, तुअ गुण कथन अपार।
प्रेम भगति कै कारणै, कहु रविदास चमार।।३।।