सङ्कल्प / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
सर्जन सुन्दर संसार करब।
जीवन-वन मे दावानल रूपी दानव दल संहार करब,
वसुधा पर वसु ओ सुधा-केर वर्षा हम मूसलधार करब।
विष-कुम्भ पयोमुख बनि दुर्मुख, लधने दुख पर दुख अछि सम्मुख,
विकराल अकालक भयें त्रस्त मरबा लय बहुतो अछि उन्मुख,
यमराजहुसँ लड़ि जायब आ यमपुरक बन्द हम द्वार करब।
जे पर-पीड़ा नहिं जानि सकय, अनका दुखमे नहि कानि सकय
दम्भेँ मातल, अपना सुख लय अन्यायक बल पर फानि सकय,
तकरा पर कठिन कृपाण उठा कय निश्चय लाल कपार करब।
मुख-मलिन, हृदय थर थर कँपैत, प्रतिपल नोरेँ झँपैत,
अन्तरक आगिमे झरकि-झरकि दाताक नाम निशि-दिन जपैत-
जे काटि रहल दुख सँ जीवन, हम तकरे बेड़ा पार करब।
घट फोड़ि विषक, पट चीरि-फाड़ि, अन्यायक गृहकेँ डाहि-जारि
प्रलयक नित नूतन दृश्य रचा, हम प्रबल विपक्षी केँ पछाड़ि
भूपर, ऊपर वक्षस्थल पर भुज-दण्डक विकट प्रहार करब।
जनताक प्राण आप्यायित कय, हम विशद विपत्तिक भार हरब।