भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सचमुच कितना महत्त्वपूर्ण है शब्द ? / रवीन्द्र प्रभात

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चों के लिए ककहरा
नौजवानों के लिए भूख और रोटी के
बीच का संघर्ष , बूढों-बुज़ुर्गों के लिए -
पिछले अनुभवों का सार
और, नपुंसकों के लिए
शक्ति का पर्याय है शब्द ।

शब्द ब्रह्म है
दार्शनिकों के लिए
राग-मल्हार संगीतज्ञों के लिए
और, कवि के लिए
क्रांति का प्रस्तावक ।

शब्द केवल शब्द नहीं
नेताओं के लिए
भाषणों एवं आश्वासनों के बीच
लटका त्रिशंकु है शब्द।
शब्द-
पत्थर तोड़ती मज़दूरनी भी है
और भार ढोता बलचनवा भी
वाराणसी की सडकों पर
अपनी त्रासदी बयां करता
मोचीराम की निगाह में
"हर आदमी एक जोड़ी जूता" और शमशेर के लिए "संसार के चक्के पर दो हाथ"
शब्द ही तो है ।

शब्द प्रेमचंद की धनिया भी है
शेखर एक जीवनी भी
शब्द दिनकर भी है
और बेनीपुरी भी
शब्द जयशंकर की कामायनी भी है
और रवीन्द्र की गीतांजलि भी
शब्द ग़ालिब की ग़ज़ल है
महाश्वेता देवी का सृजन-संसार
शब्द करुणा भी है
शब्द है प्यार....।

कितना सुखद है, और -
दुखद एक साथ
शब्दों का यह संसार
कि एक ढहे हुए मकान के नीचे दबे हुए मुक्तिबोध के लिए
चीख़ निकालना भी मुश्किल है,
असंभव....
हिलना भी ।

शब्द सृजन है
शब्द अगस्त्य
शब्द सिंधु-अथाह
शब्द समाजवाद है
जनवाद और प्रगतिवाद भी
वास्तव में-
कितना महत्त्वपूर्ण है शब्द
भाषा की रचना के लिए
तैयार होती जिससे
एक सुन्दर संस्कृति / समाज / गाँव / शहर
और एक पूरा प्रदेश....।