भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच्चाई एकजुट करती है / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोस्तो, चाहता हूँ, तुम सच्चाई को जानो और उसे कह भी सको !
भागते पस्त सम्राटों की तरह नहीं : “कल मिलेगा आटा !”
लेनिन की तरह : कल शाम तक
हम हार चुके होंगे, अगर न...
वैसे ही, जैसे कि यह गीत कहता है :
“भाई मेरे, शुरू करता हूँ
फ़ौरन इस सवाल से :
बचने का कोई चारा नहीं
अपने ख़स्ता हाल से !”
दोस्तो, पूरे दम के साथ इसे क़बूल करना
पूरे दम के साथ कहना : अगर न !

1953

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य