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सच्चा यौवन / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
काल सर्प सा
धनुष डोरी पर
जो नित क्षण-क्षण
है चढ़ जाता।
यौवन उसका ही यौवन है
जो नहीं मरन से है डरता।
शब्द-शब्द में अग्निवाण सा
जो जोश लिए है बढ़ता।
यौवन सच में वह यौवन
जो तलवारों पर चलता।
मिट्टी मांग रही है यारो
तुमसे फिर कुरवानी।
जो मिट्टी की मांग सुने
सच में वही जवानी।