सच्चे काम करने वाले / हरिऔध
दुखों की गरज क्यों न धरती हिलावे।
लगातार कितने कलेजे कँपावे।
बिपद पर बिपद क्यों न आँखें दिखावे।
बिगड़ काल ही सामने क्यों न आवे।
कभी सूरमे हैं न जीवट गँवाते।
बलायें उड़ाते हैं चुटकी बजाते।
रुकावट उन्हें है नहीं रोक पाती।
उन्हें उलझनें हैं नहीं धर दबाती।
न पेचीदगी ही उन्हें है गढ़ाती।
न कठिनाइयाँ हैं उन्हें कुछ जनाती।
बिचलते नहीं हैं कभी आनवाले।
उन्होंने मसल कब न डाले कसाले।
पड़े भीड़ जौहर उन्होंने दिखाये।
खुले वे कसौटी कुदिन पर कसाये।
निखरते मिले वे बिपद आँच पाये।
बने ठीक कुन्दन गये जब तपाये।
सभी आँख में जो सके फूल से फब।
मिले वे न काँटे दुखों में खिले कब।
न समझा कठिन पाँव बन में जमाना।
कभी कुछ बड़े पर्वतों को न माना।
हँसी खेल जाना समुन्दर थहाना।
पड़े काम आकाश पाताल छाना।
कठिन से कठिन काम भी जो सकेकर।
उन्होंने मुहिम कौन सी की नहीं सर।
उन्हें काठ उकठे हुए का फलाना।
उन्हें दूब का पत्थरों पर जमाना।
उन्हें गंग धारा उलट कर बहाना।
उन्हें ऊसरों बीच बीये उगाना।
बहुत ही सहल काम सा है जनाता।
भला साहसी क्या नहीं कर दिखाता।
अड़ंगे लगाना न कुछ काम आया।
वही गिर गया पाँव जिस ने अड़ाया।
दिया डाल बल झंझटों को बढ़ाया।
न तब भी उन्हें बैरियों ने डिगाया।
जिन्हें काम कर डालने की लगी धुन।
सदा ही सके फूल काँटों में वे चुन।
जिन्होंने न औसान अपना गँवाया।
जिन्होंने कभी जी न छोटा बनाया।
हिचकना जिन्हें भूल कर भी न भाया।
जिन्होंने छिड़ा काम कर ही दिखाया।
न माना उन्होंने बखेड़ों को टोना।
न जाना कि कहते किसे हैं 'न होना'।
चले चाल गहरी नहीं वे बिचलते।
नहीं वे कतर ब्योंत से हैं दहलते।
किये लाख चतुराइयाँ हैं न टलते।
फँसे फन्द में हाथ वे हैं न मलते।
उन्हें तंगियाँ है नहीं तान पातीं।
न लाचार लाचारियाँ हैं बनातीं।
पिछड़ना उन्हें है न पीछे हटाता।
फिसलना उन्हें है न नीचे गिराता।
बिचलना उन्हें है सँभलना सिखाता।
गया दाँव है और हिम्मत बँधाता।
उलझ गुत्थियाँ हैं उमंगें बढ़ाती।
धड़ेबंदियाँ हैं धड़क खोल जाती।
बढ़ा जी रखा काम का ढंग जाना।
बखेड़ों दुखों उलझनों को न माना।
जिन्होंने हवा देख कर पाल ताना।
जिन्हें आ गया बात बिगड़ी बनाना।
उन्होंने बड़े काम कर ही दिखाये।
भला कब तरैया न वे तोड़ लाये।