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सच, सिर्फ मृत्यु है / नीलोत्पल
Kavita Kosh से
सच एक परदा है
सबके लिए अलग तरीके से गिरता-उठता
गिरने का सुख बारिश की बूँदें जानती हैं
गिरने का दुख ईमान से बँधा है
जिनकी कोई कहानी नहीं
वे कहानी लिखते हैं
जिनके घर नहीं, घर बनाते है
लंबे अंतराल के बाद
शब्दों का अंत हो जाता है
एक गहरा मौन अभिव्यक्ति की चरम तपस्या है
बारिश की प्रतीक्षा में
बंदरगाह अधिक व्यग्र हो जाते हैं
आदर्श इनसानों में नहीं मिलता
गिरती पत्तियों ने ही साबित किया
सच, सिर्फ मृत्यु है
अदालतें सच की छिछालेदारी हैं
सच का कोई अंतिम सबूत नहीं
तुम्हारा दिल जानता है या मेरा