भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच-झूठ / कहें केदार खरी खरी / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
क्या यह सच है
कि सच नहीं है
झूठ जैसे
झूठ नहीं है
कचेहरी में
धूप से भरी दुपहरी में?
रचनाकाल: २३-१०-१९७०