भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच अगर सच न कह पाएँगे एक दिन / ब्रह्मदेव शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच अगर सच न कह पाएँगे एक दिन।
हाशियों पर चले जाएँगे एक दिन॥

जिन विषय सूचियाँ पर असहमत अभी।
वे कथानक तुम्हें भाएँगे एक दिन॥

तुम पुकारो हमें नाम लेकर कभी।
पाँव नंगे चले आएँगे एक दिन॥

ख्वाब इससे हसीं और क्या देखते?
पेट भर रोटियाँ खाएँगे एक दिन॥

उन हिजाबों का क्या फायदा है बता?
यदि हटे तो जुरम ढाएँगे एक दिन॥