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सच कहो, क्या कभी ये इंतज़ाम बदलेगा / राकेश जोशी
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सच कहो, क्या कभी ये इंतज़ाम बदलेगा
या फ़क़त तख़्तियां बदलेंगी, नाम बदलेगा
क्या ये दरबार, ये दफ़्तर भी बदल पाएंगे
या हमेशा की तरह बस निज़ाम बदलेगा
तेज जब भागने लगता है तो इतना तय है
अब वो घोड़ा नहीं उसकी लगाम बदलेगा
सिर्फ किरदार बदलने से कुछ नहीं होता
दौर बदलेगा जो किस्सा तमाम बदलेगा
ये जो बच्चे हैं, उठाते हैं अभी तक कचरा
ये पढ़ेंगे तभी तो इनका काम बदलेगा
इस अन्याय से भरी हुई व्यवस्था को
कोई राजा नहीं, कोई ग़ुलाम बदलेगा