भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच कह कर भी सच नहीं कहा / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिसके मन में ही भाव अपावन हों
उसको गंगा जल से नहला भी दो,
तो उससे क्या होगा?

जिस तोते को राम नहीं कहना,
उसको पूरी रामायण रटवा दो,
तो उससे क्या होगा?

जिसने अपनी जिद को ही सर्वोपरि माना,
उससे सार्थक तर्क करो भी,
तो उसे क्या होगा?

जिसने शब्दों के तीर सह लिये हँसकर,
उसको विष के तीर चुभाओ भी,
तो उससे क्या होगा?

जिसने सच कह कर भी सच नहीं कहा,
उससे गीता पर हाथ रखाओ भी,
तो उससे क्या होगा?