तुम्हारी आवाज इतनी
दबी-दबी सी क्यूं है
तुम्हारा चेहरा इतना
बुझा-बुझा सा क्यों है
दिन इतना अंधेरा
और रात इतनी
धूप में जैसे
खिली-खिली सी क्यों है
सच का मंजर
कालिख से इतना
पुता-पुता सा क्यों है...
तुम्हारी आवाज इतनी
दबी-दबी सी क्यूं है
तुम्हारा चेहरा इतना
बुझा-बुझा सा क्यों है
दिन इतना अंधेरा
और रात इतनी
धूप में जैसे
खिली-खिली सी क्यों है
सच का मंजर
कालिख से इतना
पुता-पुता सा क्यों है...