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सच के ह़क में खड़ा हुआ जाए / हस्तीमल 'हस्ती'
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सच के हक़ में खड़ा हुआ जाए
जुर्म भी है तो ये किया जाए
हर मुसाफ़िर में ये शऊर कहाँ
कब रुका जाए कब चला जाए
बात करने से बात बनती है
कुछ कहा जाए कुछ सुना जाए
राह मिल जाए हर मुसाफ़िर को
मेरी गुमराही काम आ जाए
इसकी तह में हैं कितनी आवाज़ें
ख़ामोशी को कभी सुना जाए