किसी ग्रन्थ का इक वाक् है 
ज़िन्दगी सच है सच जीने के लिए 
किसी न किसी अर्थ  में यह वाक् 
हर ग्रन्थ में शामिल है 
लोग हर रोज इस वाक् को सुनते हैं 
इस वाक् को पढ़ते हैं 
और सुन-सुनकर सुन छोड़ते हैं 
और पढ़-पढ़कर पढ़ छोड़ते हैं 
यह वाक् वाक् ही रह जाता है 
किसी की ज़िन्दगी नहीं बनता ...
कभी -कभी...
किसी की ज़िन्दगी प्यार-प्यार 
हो जाती है सच हो जाती है 
जैसे हीर की ज़िन्दगी 
रांझे की ज़िन्दगी 
अपने आप सच हो गई 
प्यार भी सच होता है सच जीने के लिए...