भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सच झूठ / ब्रज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
वे जो बोल लेते हैं
उनके पास इस समय झूठ है
बोले जाने के लिए।
पृथ्वी नहीं बोलती
आसमां नहीं बोलता
नदी भी नहीं बोलती
पर्वत तो कभी नहीं बोलता
और यही सब कुदरत के
बड़े बड़े लोग हैं
जो नहीं बोलते
पशु पक्षी और मनुष्य
बोलते हैं तो
वे बोल रहे हैं
उनके पास विकल्प है
झूठ बोलने का
तो वे इसी को चुन रहे हैं।