सच नहीं पता / प्रताप सहगल
हो सकता है
तुम जो कहते हो, सच कहते हो
पर सुनो
कहता मैं भी सच हूं,
तुम्हारा सच है संसद
संसद के बाहर की चौड़ी सड़कें
संसद के अन्दर के लम्बे बयान
और मेरा सच
गली में भागते चोर के पीछे
कुत्तों का शोर
कचहरी और अस्पतालों की भीड़
और राशन की दुकान.
बयान देने में तुम्हें कितनी तकलीफ होती है
सो मैं नहीं जानता
पर तुम्हारा हर बयान
अगले दिन
बाज़ार भाव तेज़ कर देता है.
उस भारी जुए का बोझ लादे
पूरा का पूरा देश
घिसट रहा है ठसक...ठसक
तभी ऊपर आसमान पर
एक तेज़ गतिवाला
विमान निकल जाता है
और तुम्हारा बयान
संसद में अब भी जारी है
देश में खामोशी है/अमन है
कीमतें गिर रही हैं.
न जाने फिर भी क्यों
नसों को जकड़ लेती है
चारों ओर फैली बदबू
या महामारी की जानलेवा आशंका.
सच ! पता नहीं क्या है सच?
कैसे हो यह तय
जब तुम्हारे और मेरे सच के बीच
तुम्हारी संसद है.