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सच बतलाना / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
नहीं कहानी भूतों वाली कहना अम्मा,
ना ही परियों वाला कोई गीत सुनाना|
क्या सचमुच ही चंदा पर रहती है बुढ़िया,
इस बारे में मुझको बिल्कुल सच बतलाना|
कहते हैं सब चंदा पर अब ,
इंसानों के पैर पड़ चुके|
वायुयान ले धरती वाले,
चंदा पर दो बार चढ़ चुके|
चंद्र ग्रहण पर उसको केतु डस लेता है,
यह बातें तो सच में लगतीं हैं बचकाना|
राहू पर भी तो सूरज को,
डसने के आरोप लगे हैं|
सोलह घोड़ों के रथ वाले,
सूरज भी क्या डरे हुये हैं|
दुनियां वाले ढूंढ़ ढूंढ़ राहू को हारे,
लेकिन अब तक नहीं मिला है पता ठिकाना|
घर से बाहर कदम रखे गर,
छींक कभी भी आ जाती है|
अशुभ मानकर अम्मा तब क्यों,
बाहर जाना रुकवाती है|
क्या सच में ही छींक हुआ करती दुखदाई,
किसी वैद्य से मिलकर पक्का पता लगाना|