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सच बता कि गाता क्यों है ? / शमशाद इलाही अंसारी

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सच बता कि गाता क्यों है,
हाल-ए- दिल सुनाता क्यों है ?

मन ही मन में रोने वाले,
सारे जग को हँसाता क्यों है ?

सोया जग फिर तू क्यों जागे,
सुन पराई पीर तू भागे क्यों है ?

जन-जन की बात सुने जी भर कर,
दिल की बात तू छिपाता क्यों है ?

तोड़ा दर्पण छोड़ी हर आशा,
अँखियों से नीर बहाता है ।
फँसा भँवर में जब संवेगों के,
अपना प्रतिबिंब तू मिटाता क्यों है ?

इसको देखा उसको भी देखा,
जान लिया सब मोह माया है ।
देह के भीतर सिमट गया जब,
उस उजाले को तू बचाता क्यों है ?

"शम्स" बना बंजारा घूमे घाट-घाट,
चमचमाता जगत दिखाता है।
वो इधर से गुज़र चुका है,
अपनी महफ़िल तू सजाता क्यों है ?

रचनाकाल : 01.09.2010