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सच बोलने के तौर-तरीक़े नहीं रहे / नवाज़ देवबंदी
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सच बोलने के तौर-तरीक़े नहीं रहे
पत्थर बहुत हैं शहर में शीशे नहीं रहे
वैसे तो हम वही हैं जो पहले थे दोस्तो
हालात जैसे पहले थे वैसे नहीं रहे
खु़द मर गया था जिनको बचाने में पहले बाप
अबके फ़साद में वही बच्चे नहीं रहे
दरिया उतर गया है मगर बह गए हैं पुल
उस पार आने-जाने के रस्ते नहीं रहे
सर अब भी कट रहे हैं नमाज़ों में दोस्तो
अफ़सोस तो ये है कि वो सजदे नहीं रहे