सच ही मर गया ? / कंस्तांतिन कवाफ़ी / सुरेश सलिल
‘‘कहाँ चला गया, औलिया ! कहाँ ग़ायब हो गया ?
अपने कई चमत्कारों के बाद,
विख्यात अपनी शिक्षाओं के लिए
जो अनेकानेक देशों तक फैली,
अचानक अन्तर्धान हो गया,
ठीक ठीक पता नहीं किसी को, क्या हुआ उसका
[न ही किसी ने कभी देखी उसकी समाधि ।]
किसी ने फैलाया इफेसिस में उसकी मृत्यु हुई
किन्तु दामिस अपने यादनामे में ऐसा नहीं कहता
अपोलोनिओस की मृत्यु की बाबत वह
कुछ नहीं कहता ।
अगलों ने ख़बर दी लिन्दोस में वो ग़ायब हुआ
या शायद क्रीट में,
दिक्तिन्ना के प्राचीन मन्दिर से जुड़ी उसकी दास्तान सच हो !
तब फिर तियाना में एक युवा विद्यार्थी के सम्मुख
उसका चमत्कारी अलौकिक आविर्भाव !
सम्भव है उसकी पुनः वापसी और दुनिया के सम्मुख
ख़ुद को प्रकट करने का सही समय अभी न हुआ हो
या, शायद, रूप बदलकर वो हमारे बीच हो
और हम पहचान नहीं पा रहे —
किन्तु वो फिर आएगा अवश्य, उसी रूप में, सत्य मार्गों के उपदेश देता
और तब निश्चय ही हमारे देवताओं की अर्चना
और हमारे शिष्ट-सुसंस्औत हेलेनी अनुष्ठान लाएगा वापस वो ।"
इस तरह सोचता बचे-खुचों में से एक पैगन
इने-गिने बचे रह गयों में से एक
जैसे ही फिलोस्त्रेतोस औत ‘ऑन अपोलोनिओस आफ़ तियाना’ का
पाठ करने के ठीक बाद अपनी बदरँग कोठरी में बैठता ।
किन्तु वह भी, एक मामूली डरपोक आदमी,
प्रकटतः ईसाइयों के-से ढोंग करता और चर्च जाता
यह वह समय था जब जस्टिन दि एल्डर
पूरे भक्तिभाव से शासन कर रहा था और
सिकन्दरिया, एक धर्मपरायण शहर को
दयनीय मूर्तिपूजकों से घृणा थी ।
[1920]
इस कविता का पहला मसौदा कवाफ़ी ने 1897 में तैयार किया था, जिसमें सिर्फ़ उद्धरण-चिन्हों के अन्दर वाला पाठ था । 1910 से 1920 के दौरान उन्होंने इसे दोबारा लिखा, तब यह कविता पूरी हुई। इसमें जिस औलिया या जिस चमत्कारी पुरुष का उल्लेख हुआ है वह अपोलोनिओस है, यूनानी दर्शन का अध्येता और एक नियमनिष्ठ पैथागोरीय तापस । उसका जन्म तियाना में ईसा से चार वर्ष पूर्व हुआ था । उसने भारत सहित कई एशियाई देशों की यात्रा की थी। उसके जीवन के अन्तिम वर्ष इफ़ेसोस में व्यतीत हुए, यद्यपि उसके अवसान को लेकर कई जनुश्रुतियाँ प्रचलन में रहीं ।
अपोलोनिओस के एक शिष्य दामिस के संस्मरणों में पहली बार उसका विस्तृत उल्लेख हुआ । फिर ईस्वी सन् 200 में फ़िलोस्त्रेतोस ने ‘लाइफ़ आफ़ अपोलोनिओस आफ़ तियाना’ नाम से उसकी जीवनी लिखी, जिसमें कई घटनाओं की स्पष्ट समानता ईसा मसीह के चमत्कारों से है । कई मसीही विद्वानों ने उसे ‘‘एण्टी-गॉस्पल’’ किस्म का माना है ।... इस कविता में वर्णित पैगन कवि-कल्पित है, किन्तु उसका समय सिकन्दरिया के बिजान्तीनी सम्राट जस्टिन प्रथम [518-527 ई.] का ही काल है ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल