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सच है कि फरिश्तों में तो गिनती नहीं होती / राम मेश्राम
Kavita Kosh से
सच है कि फरिश्तों में तो गिनती नहीं होती
मैं वो हूँ कि जिससे कभी ग़लती नहीं होती
हँस-हँस के फरिश्तों के गुनाहों को बताना
दिलचस्प, मगर ये हँसी सस्ती नहीं होती
कुदरत की तराजू में बराबर हैं सभी लोग
महसूस अलग से कोई हस्ती नहीं होती
विरसे से या तक़दीर से मिल जाती है सत्ता
भारत में कहीं कुनबापरस्ती नहीं होती
हँसने को तो हँसता है हँसी ख़ूब ज़माना
क्या बात, हँसी में कोई मस्ती नहीं होती
दर्दी है यहाँ कौन किसी और के गम का
लोगों की बसाहट से ही बस्ती नहीं होती
कानून की बैसाखियाँ सेठों को मुबारक
दौलत के हों अपराध तो सख़्ती नहीं होती
कुछ सीख सबक नामवरों से भी कबीरा
हर घर में तेरे नाम की तख़्ती नहीं होती