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सजि-धजिकऽ बाहर ने निकलू कऽ सोलहो शृंगार / बाबा बैद्यनाथ झा

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सजि-धजिकऽ बाहर ने निकलू कऽ सोलहो शृंगार
मोन हमर डगमग भऽ जाइए बदलैए व्यवहार

सम्हरि-सम्हरिक डेग बढ़ाबू ताकि रहल सभ लोक
सात सुरक सरगम सुनबै अछि पायलकेर झंकार

सौन्दर्यक सुरभित सरिता लेल सदति शरीर समर्पित
अहिकेँ पाबि हमर जिनगी ई भऽ सकतै साकार

जँ संकेत अहाँसँ भेटय तँ ई सरिपहुँ जानू
संग पड़ायब हम एखने प्रिय छोड़ि अपन घर-द्वार

आकर्षणकेर मंत्र अहाँ प्रिय समटि लिअऽ चुपचाप
अहीँक पाछू सभ दौड़ै अछि बिसरि सगर संसार