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सजि सेज रँग के महल मे उमँग भरी / हरिश्चन्द्र

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सजि सेज रँग के महल मे उमँग भरी ,
पिय गर लागि काम कसकेँ मिटाए लेति ।
ठानि विपरीत पूरे मैन के मसूसनि सोँ ,
सुरति समर जय पत्रहिँ लिखाए लेति ।
हरिचँद केलि कला परम प्रवीन तिया ,
जोम भरि पियै झकझोरनि हराए लेति ।
याद करि पीय की वे निरदई घातेँ आज ,
प्रथम समागम को बदलो चुकाए लेति ।


हरिश्चन्द्र का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।