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सजीव सुबह / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
आकाश बताता है सुबह का आठ बजा है
पारी की सुबह
तुम्हारी नहीं, मेरी भी है।
तुम्हारे बगीचे की रंगारंग सुबह
तुम्हारे कलात्मक स्थापत्य की सजीव सुबह
तुम्हारे सपनों की सुबह
अब डायरी बन गई है मेरी।