सजीव सौन्दर्य / हरिवंश राय बच्चन / विलियम बटलर येट्स
चूँकि तेल-बाती अब जलकर ख़त्म हो चुके
और नसों में रक्त जम चुका
ठण्डा होकर,
मैंने अपने असन्तुष्ट मन को समझाया,
’मनुआ, अब तो ऐसी शक़्लें देख-देखकर
ही धीरज धर
जो साँचे में ढली हुई हैं — किसी धातु की —
या जो गढ़कर गईं बनाईं — सँगमरमर की ।
मर-मर कर भी सुन्दरताएँ
बनी प्रेत की-सी छायाएँ
मन की एकाकी घड़ियों में चक्कर देतीं,
पर ये अपने प्रेमी की सुधि कभी न लेतीं ।
मनुआ, अब हम वृद्ध हो चुके ।
जीवित सुन्दरताएँ उनकी जो जवान हैं,
तप्त अश्रुओं से जो उनको अर्घ्य चढ़ाते,
हम तो ठण्डे हिम समान हैं ।
मूल अँग्रेज़ी से हरिवंश राय बच्चन द्वारा अनूदित
लीजिए अब पढ़िए यही कविता मूल अँग्रेज़ी में
William Butler Yeats
The Living Beauty
I’ll say and maybe dream I have drawn content—
Seeing that time has frozen up the blood,
The wick of youth being burned and the oil spent—
From beauty that is cast out of a mould
In bronze, or that in dazzling marble appears,
Appears, but when we have gone is gone again,
Being more indifferent to our solitude
Than ‘twere an apparition. O heart, we are old,
The living beauty is for younger men,
We cannot pay its tribute of wild tears.