सटीक समय के बारे में / मिरास्लाव होलुब / यादवेन्द्र
मछली हरदम सही-सही जानती है
उसको कहाँ जाना है..और कब.
इसी तरह
परिन्दों को होता है सही-सही ज्ञान
काल और और स्थान का भी...
आदमियों में नहीं होता यह नैसर्गिक बोध
तभी तो उन्होंने शुरू किए वैज्ञानिक अनुसन्धान।
इसके बारे में खुलासा करने को
मैं देता हूँ एक छोटी सी मिसाल।
एक सैनिक को कहा गया
दागना है उसको ठीक छह बजे हर शाम एक गोला....
सैनिक था सो करता रहा यह पूरी मुस्तैदी से।
जब उस से पूछा गया कितना सटीक रहता है उसका समय
तो वो सहजता से बोला —
पहाड़ी से नीचे शहर में रहने वाले
घड़ीसाज की खिड़की से देखता हूँ
वहाँ लगा हुआ है एक कालमापी यन्त्र....
उस से ज्यादा सही और भला क्या हो सकता है?
हर शाम पौने छह बजे उससे मिलाता हूँ अपनी घड़ी
और चढ़ने लगता हूँ पहाड़ी पर लगी तोप की ओर
ठीक पाँच उनसठ पर मैं तोप में भरता हूँ गोला
और घड़ी देखकर ठीक अगले ही मिनट गोला दाग देता हूँ।
जाहिर था उसकी यह कार्यप्रणाली
आना पाई सही थी...सटीक.
अब जाँचना था की कितना सही था कालमापी यन्त्र
सो घड़ीसाज को फ़रमान सुनाया गया
साबित करे वो कि बिलकुल सटीक है उसका यन्त्र।
बे-तकल्लुफी से घड़ीसाज बोला —
हुज़ूर, आज तक जितने भी कालमापी यन्त्र बनाए गए हैं
ये उन सब में सबसे सही है..
तभी तो सालों साल से हर शाम
दागा जाता है तोप का गोला
ठीक छह बजे...
हर शाम बिला नागा मैं देखता हूँ इस यन्त्र को
और हर बार ये मुझे छह बजाता हुआ ही दिखाई देता है।
देखो तो आदमी को कितनी चिन्ता है
बिलकुल चाकचौबन्द और सटीक रहे समय....
यह सोचते हुए मछली फिसल गई पानी के अन्दर
और आसमान भर गया परवाज भरते परिन्दों से....
कालमापी यन्त्र है कि अब भी टिक-टिक कर रहा है
और दागे जा रहे हैं दनादन गोले...।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र