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सडकें सोती नहीं कभी / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
Kavita Kosh से
हम सो रहे होते हैं
रो रही होती हैं धारणाएं हमारी
हो रही होती है कुन्द मानसिकता
गढ़ रही होती है षडयंत्र कोई
सड़कें सोती नहीं कभी भी
कर रही होती हैं इन्तज़ार किसी आगन्तुक का
हो रही होती हैं खुशी
चल कर कोई पहुंचेगा अपने नीड़-निज पर
हम सो रहे होते हैं
कोशिश कर रहे होते है
भटके कोई अधिक अपने रास्ते से
भटकता नहीं कोई
लेकिन हम भटक रहे होते हैं लगातार
भटकते रहते हैं बार बार।